सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
ताविति॥ तौ जाया च पतिश्च दंपती। राजदन्तादिषु जाया
शब्दस्य दम्भावो जम्भावश्च विकल्पेन निपातितः। दंपती जंपती जायापती भार्यापती च तौ
इत्यमरः (अमरकोशः १.६.१६ ) । बहु विलप्य भूयिष्ठं परिदेव्य। विलापः परिदेवनम्
इत्यमरः (अमरकोशः १.६.१६ ) । शिशोरुरस्तो वक्षसः। पञ्चम्यास्तसिल्
(अष्टाध्यायी ५.३.७ ) । निखातं शल्यं शरं प्रहर्त्रा राज्ञोदहारयतामुद्धारयामासतुः। स शिशुः परासुर्गतप्राणोऽभूत्। अथ वृद्धो हस्तार्पितैर्नयनवारिभिरेव शापदानस्य जलपूर्वकत्वात्तैरेव भूमिपतिं शशाप॥
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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तौ | दं | प | ती | ब | हु | वि | ल | प्य | शि | शोः | प्र | ह | र्त्रा |
श | ल्यं | नि | खा | त | मु | द | हा | र | य | ता | मु | रा | स्तः |
सो | ऽभू | त्प | रा | सु | र | थ | भू | मि | प | तिं | श | शा | प |
ह | स्ता | र्पि | तै | र्न | य | न | वा | रि | भि | रे | व | वृ | द्धः |
त | भ | ज | ज | ग | ग |