सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
हा तातेति॥ हेत्यार्तौ। तातो जनकः। हा विषादशुगर्तिषु
इति, तातस्तु जनकः पिता
इति चामरः। हा तातेति क्रन्दितं क्रोशनमाकर्ण्य। विषण्णो भग्नोत्साहः सन्। तस्य क्रन्दितस्तय वेतसैर्गूढं छन्नम्। प्रभवत्यस्मादिति प्रभवः कारणम्। तमन्विष्यञ्छल्येन शरेण प्रोतं स्यूतम्। शल्यं शङ्कौ शरे वंशे
इति विश्वः। सकुम्भं मुनिपुत्रं प्रेक्षअय स क्षितिपोऽपि तापाद्दुःखादन्तःशल्यं यस्य सोऽन्तःशल्य इवासीत्। मत्तमयूरं वृत्तम् ॥
छन्दः
मत्तमयूरम् [१३: मतयसग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ |
---|
हा | ता | ते | ति | क्र | न्दि | त | मा | क | र्ण्य | वि | ष | ण्ण |
स्त | स्या | न्वि | ष्य | न्वे | त | स | गू | ढं | प्र | भ | वं | सः |
श | ल्य | प्रो | तं | प्रे | क्ष | अ | य | स | कु | म्भं | मु | नि | पु | त्रं |
ता | पा | द | न्तः | श | ल्य | इ | वा | सी | त्क्षि | ति | पो | ऽपि |
म | त | य | स | ग |