सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अनुभवन्निति॥ नवो दोला प्रेङ्खा यस्मिंस्तं नवदोलमृतूत्सवं वसन्तोत्सवमनुभवन्नबलाजनः पटुरपि निपुणोऽपि प्रियकण्ठस्य जिघृक्षया ग्रहीतुमालिङ्गितुमिच्छया आसनरज्जुपरिग्रहे पीठरज्जुग्रहणे भुजलतां बाहुलतां जलतां शैथिल्यम्। डलयोरभेदः। अनयत् दोलाक्रीडासु पतनभयनाटितकेन प्रियकण्ठमाश्लिष्यदित्यर्थः ॥
छन्दः
द्रुतविलम्बितम् [१२: नभभर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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अ | नु | भ | व | न्न | व | दो | ल | मृ | तू | त्स | वं |
प | टु | र | पि | प्रि | य | क | ण्ठ | जि | घृ | क्ष | या |
अ | न | य | दा | स | न | र | ज्जु | प | रि | ग्र | हे |
भु | ज | ल | तां | ज | ल | ता | म | व | ला | ज | नः |
न | भ | भ | र |