सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
उपययाविति॥ मधुना मधुसमयेन खण्डिता ह्रासं गमिता। क्षीयन्ते खलूत्तरायणे रात्रयः; खण्डिताख्या च नायिका ध्वन्यते। हिमकरोदयेन चन्द्रोदयेन पाण्डुर्मुखस्य प्रदोषस्य वक्रस्य च छविर्यस्याः सा रजन्येव वधूः। इष्टसमागमनिर्वृत्तिं प्रियसंगमसुखम्। अनितयाऽप्राप्तया। इण् गतौ
इति धातोः समागमनिर्वृतिं प्रियसंगमसुखम्। अनितयाऽप्राप्तया। इण् गतौ
इति धातोः कर्तरि क्तः। वनितया सदृशं तुल्यं तनुतां न्यूनतां कार्श्यं चोपययौ ॥
छन्दः
द्रुतविलम्बितम् [१२: नभभर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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उ | प | य | यौ | त | नु | तां | म | धु | ख | ण्डि | ता |
हि | म | क | रो | द | य | पा | ण्डु | मु | ख | च्छ | विः |
स | दृ | श | मि | ष्ट | स | मा | ग | म | नि | र्वृ | तिं |
व | नि | त | या | नि | त | या | र | ज | नी | व | धूः |
न | भ | भ | र |