सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
शुशुभिर इति॥ विकचतामरसा विकसितकमलाः। मदेन कला अव्यक्तमधुरं ध्वनन्त उदकलोलविहंगमा जलप्रियपक्षिणो हंसादयो यासु ता मदकलोदकलोलविहंगमा गृहेषु दीर्घिका वाप्यः। स्मितेन चारुतराण्याननानि यासां ताः श्लथाः शिञ्जिता मुखरा मेखला यासां ताः। शिञ्जितेति कर्तरि क्तः। स्त्रिय इव शुशुभिरे ॥
छन्दः
द्रुतविलम्बितम् [१२: नभभर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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शु | शु | भि | रे | स्मि | त | चा | रु | त | रा | न | नाः |
स्त्रि | य | इ | व | श्ल | थ | शि | ञ्जि | त | मे | ख | लाः |
वि | क | च | ता | म | र | सा | गृ | ह | दी | र्घि | का |
म | द | क | लो | द | क | लो | ल | वि | हं | ग | माः |
न | भ | भ | र |