सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
प्रथममिति॥ सुरभिर्गन्धो यासां तासु सुरभिगन्धिषु। गन्धस्य-
(अष्टाध्यायी ५.४.१३५ ) इत्यादिनेकारः। कुसुमान्यासां संजातानि कुसुमिताः। तासु वनराजिषु वनपङ्क्तिषु। अन्यभृताभिः कोकिलाभिः प्रथमं प्रारम्भेषूदीरिता उक्ता अत एव मिताः परिमिता गिर आलापाः। प्रविरला मौग्ध्यात्स्तोकोक्ता मुग्धवधूनां कथा वाच इव। शुश्रुविरे श्रुताः ॥
छन्दः
द्रुतविलम्बितम् [१२: नभभर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
---|
प्र | थ | म | म | न्य | भृ | ता | भि | रु | दी | रि | ताः |
प्र | वि | र | ला | इ | व | मु | ग्ध | व | धू | क | थाः |
सु | र | भि | ग | न्धि | षु | शु | श्रु | वि | रे | गि | रः |
कु | सु | मि | ता | सु | मि | ता | व | न | रा | जि | षु |
न | भ | भ | र |