ऋतोरण्
(अष्टाध्यायी ५.१.१०५ ) इत्यण्। नवं प्रत्यग्रमशोकतरोः केवलं कुसुममेव स्मरदीपनमुद्दीपनं न। किंतु विलासिनां मदयिता मदजनको दयिताश्रवणार्पितः किसलयप्रसवोऽपि पल्लवसंतानोऽपि स्मरदीपनोऽभवत् ॥
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कु | सु | म | मे | व | न | के | व | ल | मा | र्त | वं |
न | व | म | शो | क | त | रोः | स्म | र | दी | प | नम् |
कि | स | ल | य | प्र | स | वो | ऽपि | वि | ला | सि | नां |
म | द | यि | ता | द | यि | ता | श्र | व | णा | र्पि | तः |
न | भ | भ | र |