सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
कुसुमेति॥ आदौ कुसुमजन्म। ततो नवपल्लवाः। तदनु। अनुर्लक्षणे
(अष्टाध्यायी १.४.८४ ) इति कर्मप्रवचनीयत्वाद्द्वितीया। यथासंख्यं तदुभयानन्तरं षट्पदानां कोकिलानां च कूजितम्। इत्येवंप्रकारेण यथाक्रमं क्रममनतिक्रम्य द्रुमवतीं द्रुमभूयिष्ठां वनस्थलीमवतीर्य मधुर्वसन्त आविरभूत्। केषाचिद्द्रुमामां पल्लवप्राथम्यात्केषांचित्कुसुमप्राथम्यान्नोक्तक्रमस्य दृष्टविरोधः ॥
छन्दः
द्रुतविलम्बितम् [१२: नभभर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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कु | सु | म | ज | न्म | त | तो | न | व | प | ल्ल | वा |
स्त | द | नु | ष | ट्प | द | को | कि | ल | कू | जि | तम् |
इ | ति | य | था | क्र | म | मा | वि | र | भू | न्म | धु |
द्रु | म | व | ती | म | व | ती | र्य | व | न | स्थ | लीम् |
न | भ | भ | र |