सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तमिति॥ परिरेव देवता यासां ताः पतिदेवताः पतिव्रताः। मगधाश्च कोसलाश्च केकयाश्च ताञ्जनपदाञ्छासतीति तच्छासिनः। तेषां राज्ञां दुहितरः पुत्र्यः। सुमित्राक-कौसल्या-कैकेय्य इत्यर्थः। अत्र क्रमो न विवक्षितः। अहितरोपितमार्गणं शत्रुनिखातशरम्। कदम्बमार्गणशराः
इत्यमरः। तं दशरथँ शिकरिणां क्ष्माभृतां दुहितरः। आ समन्तादपगच्छन्तीति। अथवा, -आपेनाप्संबन्धिना वेगेन गच्छन्तीत्यापगाः
इति क्षीरस्वामी। नद्यः सागरमिव। पतिं भर्तारमलभन्त प्रापुः ॥
छन्दः
द्रुतविलम्बितम् [१२: नभभर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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त | म | ल | भ | न्त | प | तिं | प | ति | दे | व | ताः |
शि | ख | रि | णा | मि | व | सा | ग | र | मा | प | गाः |
म | ग | ध | को | स | ल | के | क | य | शा | सि | नां |
दु | हि | त | रो | ऽहि | त | रो | पि | त | मा | र्ग | णम् |
न | भ | भ | र |