अपि
शब्दो नितान्तमार्दवद्योतनार्थः। गात्रसंगमाद्देहसंसर्गादायुरपोहितुमपहर्तुं प्रभवन्ति यदि। हन्त विषादे। हन्त हर्षेऽनुकम्पायां वाक्यारम्भविषादयोः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.२५९ ) । प्रहरिष्यतो हन्तुमिच्छतो विधेर्दैवस्यान्यत् कुसुमातिरिक्तं किमिव वस्तु। इव
शब्दो वाक्यालंकारे। कीदृशमित्यर्थः। साधनं प्रहरणं न भविष्यति न भवेत्? सर्वमपि साधनं भविष्यत्येवेत्यर्थः ॥
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कु | सु | मा | न्य | पि | गा | त्र | सं | ग | मा | |
त्प्र | भ | व | न्त्या | यु | र | पो | हि | तुं | य | दि |
न | भ | वि | ष्य | ति | ह | न्त | सा | ध | नं | |
कि | मि | वा | न्य | त्प्र | ह | रि | ष्य | तो | वि | धेः |