विलापः परिदेवनम्
इत्यमरः (अमरकोशः १.६.१६ ) । अभितप्तमग्निना संतप्तमयो लोहमचेतनमपि मार्दवं मृदुत्वमवैरत्वं च भजते प्राप्नोति। शरीरिषु देहिषु। अभिसंतप्तेष्विति शेषः। विषये कैव कथा वार्ता? अनुक्तसिद्धमित्यर्थः ॥
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वि | ल | ला | प | स | बा | ष्प | ग | द्ग | दं | |
स | ह | जा | म | प्य | प | हा | य | धी | र | ताम् |
अ | भि | त | प्त | म | यो | ऽपि | मा | र्द | वं | |
भ | ज | ते | कै | व | क | था | श | री | रि | षु |