सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अथवेति॥ अथवा पक्षान्तरे। प्रजान्तकः कालो मृत्युः मृदु कोमलं वस्तु मृदुनैव वस्तुना हिंसितुं हन्तुमारभत उपक्रमते। अत्रार्थे हिमसेकेन तुषारनिष्यन्देन विपत्तिर्मृत्युर्यस्याः सा तथा नलिनी पद्मिनी मे पूर्वं प्रथमं निदर्शनमुदाहरणं मता, द्वितीयं निदर्शनं पुष्पमृत्युरिन्दुमतीति भावः ॥
छन्दः
वियोगिनी []
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|
अ | थ | वा | मृ | दु | व | स्तु | हिं | सि | तुं |
मृ | दु | नै | वा | र | भ | ते | प्र | जा | न्त | कः |
हि | म | से | क | वि | प | त्ति | र | त्र | मे |
न | लि | नी | पू | र्व | नि | द | र्श | नं | म | ता |