आदि
शब्देन जलसेककर्पूरक्षोदादयो गृह्यन्ते। सा त्विन्दुमती तथैव संस्थिता मृता। तथाहि-प्रतिकारविधानं चिकित्सायुषो जीवितकालस्य शेषे सति विद्यमाने।
आयुर्जीवितकालो ना` इत्यमरः (अमरकोशः २.८.१२० ) । फलाय सिद्धये कल्पत आरोग्याय भवति, नान्यथा। नृपतेरायुःशेषसद्भावात्प्रतीकारस्य साफल्यम्। तस्यास्तु तदभावाद्वैफल्यमित्यर्थः ॥
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नृ | प | ते | र्व्य | ज | ना | दि | भि | स्त | मो | |
नु | नु | दे | सा | तु | त | थै | व | सं | स्थि | ता |
प्र | ति | का | र | वि | धा | न | मा | यु | षः | |
स | ति | शे | षे | हि | फ | ला | य | क | ल्प | ते |