लता प्रतानिनी वीरुत्
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.९ ) । ऋतोः प्राप्तामार्तवीमृतुसंबन्धिनीं विभूतिं समृद्धिमभिभूय तिरस्कृत्य नृपतेरजस्य दयिताया इन्दुमत्या उर्वोर्विशालयोः स्तनयोर्ये कोटी चूचुकौ तयोः सुस्थितिं गोप्यस्थाने पतितत्वात्प्रशस्तं स्थानम् । आप प्राप्ता ॥
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अ | भि | भू | य | वि | भू | ति | मा | र्त | वीं | |
म | धु | ग | न्धा | ति | श | ये | न | वी | रु | धाम् |
नृ | प | ते | र | म | र | स्र | गा | प | सा | |
द | यि | तो | रु | स्त | न | को | टि | सु | स्थि | तिम् |