(वा.१०७९) इत्यपादानात्पञ्चमी।
व्याङ्परिभ्यो रमः` (अष्टाध्यायी १.३.८३ ) इति परस्मैपदम्। स्थिरधीर्निश्चलचित्तो नवेतरो रघुश्चापरमात्मदर्शनात् परमात्मसाक्षात्कारपर्यन्तं योगविधेरैक्यानुसंधानान्न विरराम ॥
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न | न | वः | प्र | भु | रा | फ | लो | द | या | |
त्स्थि | र | क | र्मा | वि | र | रा | म | क | र्म | णः |
न | च | यो | ग | वि | धे | र्न | वे | त | रः | |
स्थि | र | धी | रा | प | र | मा | त्म | द | र्श | नात् |