कौतुकं मङ्गले हर्षे हस्तसूत्रे कुतूहले
इति शाश्वतः। तस्याजस्य। अपरामिन्दुमतीमिव। वसुधामपि हस्तगामिनीमकरोत्। अस्मिन्सर्गे वैतालीयं छन्दः ॥
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अ | थ | त | स्य | वि | वा | ह | कौ | तु | कं | |
ल | लि | तं | बि | भ्र | त | ए | व | पा | र्थि | वः |
व | सु | धा | म | पि | ह | स्त | गा | मि | नी | |
म | क | रो | दि | न्दु | म | ती | मि | वा | प | राम् |