सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अन्योन्येति॥ कौचिद्वीरावन्योन्यस्य सूतयोः सारथ्योरुन्मथनान्निघनात्तावेव सूतौ रथिनौ योद्धारौ चाभूताम्। तावेव व्यश्वौ नष्टाश्वौ सन्तौ गदाभ्यां व्यायतो दीर्घः संप्रहारो युद्धं ययोस्तावभूताम्। ततो भग्नायुधौ सन्तौ बाहुविमर्दे निष्ठा नाशो ययोस्तौ बाहुयुद्धसक्तावभूताम्। निष्ठा निष्पत्तिनाशान्ताः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.४७ ) ॥
छन्दः
इन्द्रवज्रा [११: ततजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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अ | न्यो | न्य | सू | तो | न्म | थ | ना | द | भू | तां |
ता | वे | व | सू | तौ | र | थ | इ | नौ | च | कौ | चित् |
व्य | श्वौ | ग | दा | व्या | य | त | सं | प्र | हा | रौ |
भ | ग्ना | यु | धौ | बा | हु | वि | म | र्द | नि | ष्ठौ |
त | त | ज | ग | ग |