इण्निष्ठायाम्
(अष्टाध्यायी ७.२.४७ ) इतीडागमः। भुजच्छेदं भुजखण्डं तेभ्यां विहंगेभ्य आक्षिप्याच्छिद्य पिशितप्रिया मांसप्रियाऽपि शिवा कोष्ट्री। शिवः कीलः शिवा क्रोष्ट्री
इति विश्वः। केयूरकोट्याऽङ्गदाग्रेण क्षतस्तालुदेशो यस्याः सा सती। अपाचकारापसारयामास। किरतेः करोतेर्वा लिट्॥
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उ | पा | न्त | यो | र्नि | ष्कु | षि | तं | वि | हं | गै |
रा | क्षि | प्य | ते | भ्यः | पि | शि | त | प्रि | या | पि |
के | यू | र | को | टि | क्ष | त | ता | लु | दे | शा |
शि | वा | भु | ज | च्छे | द | म | पा | च | का | र |