सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
नदत्स्विति॥ तूर्येषु नदत्सु सत्सु, अविभाव्यवाचोऽनवधार्यगिरश्चापभृतो धानुष्काः कुलमुपदिश्यते प्रख्याप्यते यैस्ते कुलोपदेशास्तान्कुलनामानि नोदीरयन्ति स्म नोञ्चारयामासुः। श्रोतुमशक्यत्वाद्वाचो नाब्रुवन्नित्यर्थः। किंतु बाणाक्षरैर्बाणेषु लिखिताक्षरैरेव परस्परस्यान्योन्यस्योर्जितं प्रख्यातं नाम शशंसुरूचुः ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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न | द | त्सु | तू | र्ये | ष्व | वि | भा | व्य | वा | चो |
नो | दी | र | य | न्ति | स्म | कु | लो | प | दे | शान् |
बा | णा | क्ष | रै | रे | व | प | र | स्प | र | स्य |
ना | मो | र्जि | तं | चा | प | भृ | तः | श | शं | सुः |