सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
उत्थापित इति॥ संयति संग्रामेऽश्वैरुत्थापितः । स्यन्दनवंशानां रथसमूहानां चक्रै रथाङ्गैः सान्द्रीकृतो घनीकृतः। वंशः पृष्ठास्थि गेहोर्ध्वकाष्ठे;वेणौ गणे कुले
इति केशवः। कुञ्जरकर्णानां तालैस्तानैर्विस्तारितः प्रसारितो रेणुर्नेत्रक्रमेणांशुकपरिपाट्या। अंशुकमिवेत्यर्थः। स्याज्जटांशुकयोर्नेत्रम्
इति, क्रमोऽङ्घ्रौ परिपाट्यां च
इति च केशवः। सूर्यमुपरुरोधाच्छादयामास ॥
छन्दः
इन्द्रवज्रा [११: ततजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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उ | त्था | पि | तः | सं | य | ति | रे | णु | र | श्वैः |
सा | न्द्री | कृ | तः | स्य | न्द | न | वं | श | च | क्रैः |
वि | स्ता | रि | तः | कु | ञ्ज | र | क | र्ण | ता | लै |
र्ने | त्र | क्र | मे | णो | प | रु | रो | ध | सू | र्यम् |
त | त | ज | ग | ग |