वसती रात्रिवेश्मनोः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.७४ ) । कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे
(अष्टाध्यायी २.३.५ ) इति द्वितीया। पर्यात्यये दर्शान्त उष्णरश्मेः सूर्यात् सोमश्चन्द्र इव। तस्मादजादपावर्तत । तं विसृज्य निवृत्त इत्यर्थः ॥
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ति | स्र | स्त्रि | लो | क | प्र | थि | ते | न | सा | र्ध |
म | जे | न | मा | र्गे | व | स | ती | रु | षि | त्वा |
त | स्मा | द | पा | व | र्त | त | कु | ण्डि | ने | शः |
प | र्वा | त्य | ये | सो | म | इ | वो | ष्ण | र | श्मेः |