यौतकादि तु यद्देयं सुदायो हरणं च तत्
इत्यमरः (अमरकोशः २.८.२८ ) । आहरणीकृता श्रीर्येन तथोक्तः सन्, राघवमजं प्रास्थापयत् प्रस्थापितवान्। स्वयमन्वगादनुजगाम च ॥
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भ | र्ता | पि | ता | व | त्क्र | थ | कै | शि | का | ना |
म | नु | ष्ठि | ता | न | न्त | र | जा | वि | वा | हः |
स | त्त्वा | नु | रू | पा | ह | र | णी | कृ | त | श्रीः |
प्रा | स्था | प | य | द्रा | घ | व | म | न्व | गा | ञ्च |