सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
स इति॥ आरम्भसिद्धौ कार्यसिद्धौ विषये। पूर्वं कृता कृतपूर्वा। सुप्सुपेति समासः। कृतपूर्वा संवित् संकेतो मार्गावरोधरूप उपायो येन स तथोक्तः। संविद्युद्धेप्रतिज्ञायां संकेताचारनामसु
इति केशवः। स राजलोकः समयोपलभ्यमजप्रस्थानकाले लभ्यम्। तदा तस्यैकाकित्वादिति भावः। समरोपलभ्यम्
इति पाठे युद्धसाध्यमित्यर्थः। तत्प्रमदैवामिषं भोग्यवस्तु। आमिषं त्वस्त्रियां मांसे तथा स्याद्भोग्यवस्तुनि
इति केशवः। आदास्यमानो ग्रहीष्यमाणः सन्, अजस्य पन्थानमावृत्यावरुध्य तस्थौ ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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स | रा | ज | लो | कः | कृ | त | पू | र्व | सं | वि |
दा | र | म्भ | सि | द्धौ | स | म | यो | प | ल | भ्यम् |
आ | दा | स्य | मा | नः | प्र | म | दा | मि | षं | त |
दा | वृ | त्य | प | न्था | न | म | ज | स्य | त | स्थौ |