लोलश्चलसतृष्णयोः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.२१४ ) । तयोर्दंपत्योर्विलोचनानि दृष्टयो मनोज्ञां रम्यां ह्रिया निमित्तेन यन्त्रणां संकोचमानशिरे प्रापुः ॥
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त | यो | र | पा | ङ्ग | प्र | ति | सा | रि | ता | नि |
क्रि | या | स | मा | प | त्ति | नि | व | र्ति | ता | नि |
ह्री | य | न्त्र | णा | मा | न | शि | रे | म | नो | ज्ञा |
म | न्यो | न्य | लो | ला | नि | वि | लो | च | ना | नि |