बन्दिनः स्तुतिपाठकाः
इत्यमरः (अमरकोशः २.८.९७ ) । सोमार्कवंश्ये सोमसूर्यवंशभवे नरदेवलोके राजसमूहे स्तुते सति। विवेशेत्युत्तरेण संबन्धः। एवमुत्तरत्रापि योज्यम्। संचारिते समन्तात्प्रचारिते। अगुरुंसारो योनिः कारणं यस्य तस्मिन् धूपे च वैजयन्तीः पताकाः समुत्सर्पति सति अतिक्रम्य गच्छति सति ॥
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अ | थ | स्तु | ते | ब | न्दि | भि | र | न्व | य | ज्ञैः |
सो | मा | र्क | वं | श्ये | न | र | दे | व | लो | के |
सं | चा | रि | ते | चा | गु | रु | सा | र | यो | नौ |
धू | पे | स | मु | त्स | र्प | ति | वै | ज | य | न्तीः |