दरी तु कन्दरो वा स्त्री
इत्यमरः (अमरकोशः २.३.६ ) । अम्भसः पृषतैर्बिन्दुभिरुक्षितानि सिक्तानि। शिलायां भवंशैलेयम्। शिलाजतु च शैलेयम्
इति यादवः। यद्वा, -शिलापुष्पाख्य ओषधिविशेषः। कालानुसार्यवृद्धाश्यपुष्पशीतशिवानि तु। शैलेयम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.३.६ ) । शिलाया ढः
(अष्टाध्यायी ५.३.१०२ ) इत्यत्र शिलाया इति योगविभागादिवार्थे ढप्रत्ययः। तद्गनधवन्ति शैलेयगन्धीनि शिलातलान्यध्यास्याधिष्ठाय कलापिनां बर्हिणां नृत्यं पश्य ॥
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अ | ध्या | स्य | चा | म्भः | पृ | ष | तो | क्षि | ता | नि |
शै | ला | य | ग | न्धी | नि | शि | ला | त | ला | नि |
क | ला | पि | नां | प्र | वृ | षि | प | श्य | नृ | त्यं |
का | न्ता | सु | गो | व | र्ध | न | क | न्द | रा | सु |