सुयजोर्ङ्वनिप्
(अष्टाध्यायी ३.२.१०३ ) इति ङ्वनिप्प्रत्ययः। एष पार्तिवः। नीपो नामान्वयोऽस्येति नीपान्वयो नीपवंशजः। यं सुषेणमाश्रित्य गुणैर्ज्ञानमौनादिभिः। शान्तं प्रसन्नं सिद्धाश्रममृष्याश्रममेत्य प्राप्य सत्त्वैर्गजसिंहादिभिः प्राणिभिरिव। नैसर्गिकः स्वाभाविकोऽपि परस्परेण विरोध उत्ससृजे त्यक्तः ॥
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नी | पा | न्व | यः | पा | र्थि | व | ए | ष | य | ज्वा |
गु | णै | र्य | मा | श्रि | त्य | प | र | स्प | रे | ण |
सि | द्धा | श्र | मं | शा | न्त | मि | वै | त्य | स | त्त्वै |
र्नै | स | र्गि | को | ऽप्यु | त्स | सृ | जे | वि | रो | धः |