सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
सेति॥ लोकान्तरे स्वर्गादावपि गीतकीर्तिमाचारेण शुद्धयोरुभयोवंशयोर्मातापितृकुलयोर्दीपं प्रकाशकम्। उभयवंश
इत्यत्रोभयपक्षवन्निर्वाहः। शूरसेनानां देशानामधिपतिं सुषेणं नाम नृपतिमुद्दिश्याभिसंधाय शुद्धान्तरक्ष्याऽन्तःपुरपालिकया। कर्मण्यण्
(अष्टाध्यायी ३.२.१ ) । टिड्ढाणञ्-
(अष्टाध्यायी ४.१.१५ ) इति ङीप्। सा कुमारी जगदे ॥
छन्दः
इन्द्रवज्रा [११: ततजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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सा | शू | र | से | ना | धि | प | तिं | सु | षे | ण |
मु | द्दि | श्य | लो | का | न्त | र | गी | त | की | र्तिम् |
आ | चा | र | शु | द्धो | भ | य | वं | श | दी | पं |
शु | द्धा | न्त | र | क्ष्या | ज | ग | दे | कु | मा | री |
त | त | ज | ग | ग |