कारा स्याद्बन्धनालये
इत्यमरः। आ प्रसादादनुग्रहपर्यन्तमुषितं स्थितम्। नपुंसके भावे क्तः
(अष्टाध्यायी ३.३.११४ ) । एतत्प्रसाद एव तस्य मोक्षोपायो न तु क्षात्रमिति भावः ॥
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ज्या | ब | न्ध | नि | ष्प | न्द | भु | जे | न | य | स्य |
वि | निः | श्व | स | द्व | क्त्र | प | रं | प | रे | ण |
का | रा | गृ | हे | नि | र्जि | त | वा | स | वे | न |
ल | ङ्के | श्व | रे | णो | षि | त | मा | प्र | सा | दात् |