सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
सङ्ग्रामेति॥ सङ्ग्रामेषु युद्धेषु निर्विष्टा अनुभूताः सहस्रं बाहवो यस्य स तथोक्तः। युद्धादन्यत्र द्विभुज एव दृश्यत इत्यर्थः। अष्टादशसु द्वीपेषु निखाताः स्थापिता यूपा येन स तथोक्तः। सर्वक्रतुयाजी सार्वभौमश्चेति भावः। जरायुजादिसर्वभूतरञ्जनादनन्यसाधारणो राजशब्दो यस्य स तथोक्तः। योगी। ब्रह्मविद्वानित्यर्थः। स किल भगवती दत्तात्रेयाल्लब्धयोग इति प्रसिद्धिः। कृतवीर्यस्यापत्यं पुमान् कार्तवीर्यो नाम राजा बभूव किलेति। अयं चास्य महिमा सर्वोऽपि दत्तात्रेयवरप्रसादलब्ध इति भारते(वन.अ.११५;अनु.अ.१५२) दृश्यते ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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स | ङ्ग्रा | म | नि | र्वि | ष्ट | स | ह | स्र | बा | हु |
र | ष्टा | द | श | द्वी | प | नि | खा | त | यू | पः |
अ | न | न्य | सा | धा | र | ण | रा | ज | श | ब्दो |
ब | भू | व | यो | गी | कि | ल | का | र्त | वी | र्यः |