वयसि दन्तस्य दतृ
(अष्टाध्यायी ५.४.१४१ ) इति दत्रादेशः। उगितश्च
(अष्टाध्यायी ४.१.६ ) इति ङीप्। तां प्रकृतां प्रसिद्धां वा विधातुर्ललितां सृष्टम्। मधुरनिर्माणां स्त्रियमित्यर्थः। अनुगता आपो येषु तेऽनूपा नाम देशाः। ऋक्पूरब्धूः पथामानक्षे
(अष्टाध्यायी ५.४.७४ ) इत्यप्रत्ययः समासान्तः। ऊदनोर्देशे
(अष्टाध्यायी ६.३.९८ ) इत्यूदादेशः। तेषां राज्ञोऽनूपराजस्याग्रतो विधाय व्यवस्थाप्य भूयः पुनर्जगाद ॥
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ता | म | ग्र | त | स्ता | म | र | सा | न्त | रा | भा |
म | नू | प | रा | ज | स्य | गु | णै | र | नू | नाम् |
वि | धा | य | सृ | ष्टिं | ल | लि | तां | वि | धा | तु |
र्ज | गा | द | भू | यः | सु | द | तीं | सु | न | न्दा |