कुमुदनडवेतसेभ्यो डतुपु
(अष्टाध्यायी ४.२.८७ ) इति ङ्मतुप्प्रत्ययः। भानुमत्यंशुमतीव। भावं चित्तं न बबन्ध। न तत्रानुरागमकरोदित्यर्थः। बन्धूनां पद्मत्वेन शत्रूणां पङ्कत्वेन च निरूपणं राज्ञः सूर्यसाम्यार्थम् ॥
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त | स्मि | न्न | भि | द्यो | ति | त | ब | न्धु | प | द्मे |
प्र | ता | प | सं | शो | षि | त | श | त्रु | प | ङ्के |
ब | ब | न्ध | सा | नो | त्त | म | सौ | कु | मा | र्या |
कु | मु | द्व | ती | भा | नु | म | ती | व | भा | वम् |