स्त्री द्वार्द्वारं प्रतीहारः
इत्यमरः (अमरकोशः २.२.१६ ) । द्विषद्भिः शत्रुभिर्दुःप्रसहं दुःसहम्। शूरमित्यर्थः। विशेषेण दृश्यं दर्शनीयम्। रूपवन्तमित्यर्थः। परमन्यं नृपम्। नवोत्थानं नवोदयमिन्दुमिव। इन्दुमत्यै निदर्शयामास ॥
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त | तः | प | रं | दुः | प्र | स | हं | द्वि | ष | द्भि |
र्नृ | पं | नि | यु | क्ता | प्र | ति | हा | र | भू | मौ |
नि | द | र्श | या | मा | स | वि | शे | ष | दृ | श्य |
मि | न्दुं | न | वो | त्था | न | मि | वे | न्दु | म | त्यै |