सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अनेनेति॥ वरेण्येन वरणीयेन। वृणोतेरौणादिक एण्यप्रत्ययः। अनेन राज्ञा गृह्यमाणं पाणिमिच्छसि चेत्। पाणिग्रहणमिच्छसि चेदित्यर्थः। प्रवेशे प्रवेशकाले प्रासादवातायनसंश्रितानां राजभवनगवाक्षस्थितानां पुष्पपुराङ्गनानां पाटलिपुराङ्गनानां नेत्रोत्सवं कुरु। सर्वोत्तमानां तासामपि दर्शनीया भविष्यसीति भावः ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|
अ | ने | न | चे | दि | च्छ | सि | गृ | ह्य | मा | णं |
पा | णिं | व | रे | ण्ये | न | कु | रु | प्र | वे | शे |
प्रा | सा | द | वा | ता | य | न | सं | श्रि | ता | नां |
ने | त्रो | त्स | वं | पु | ष्प | पु | रा | ङ्ग | ना | नाम् |