मधूके तु गुडपुष्पमधुद्रुमौ
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.२७ ) । वरेण शिथिलप्रयत्नेति भावः। तन्वीन्दुमती। एनं नृमभाषमाणम्। ऋज्व्या भावशून्यया प्रणामक्रिययैव प्रत्यादिदेश परिजहार ॥
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ए | वं | त | यो | क्ते | त | म | वे | क्ष्य | किं | चि |
द्वि | स्रं | सि | दू | र्वा | ङ्क | म | धू | क | मा | ला |
क्र | जु | प्र | णा | म | क्रि | य | यै | व | त | न्वी |
प्र | त्या | दि | दे | शै | न | म | भा | ष | मा | णा |