टिड्ढाणञ्-
(अष्टाध्यायी ४.१.१५ ) इत्यादिना ङीप्। प्राक् प्रथमं कुमारीमिन्दुमतीं मगधेश्वरस्य संनिकर्षं समीपं नीत्वा पुंवत् पुंसा तुल्यम्। तेन तुल्यं क्रिया चेद्वतिः
(अष्टाध्यायी ५.१.११५ ) इति वतिप्रत्ययः। अवदत् ॥
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त | तो | नृ | पा | णां | श्रु | त | वृ | त्त | वं | शा |
पुं | व | त्प्र | ग | ल्भा | प्र | ति | हा | र | र | क्षी |
प्रा | क्सं | नि | क | र्षं | म | ग | धे | श्व | र | स्य |
नी | त्वा | कु | मा | री | म | व | द | त्सु | न | न्दा |