शतपत्रं कुशेशयम्
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.४० ) । रेखारूपो ध्वजो लाञ्छनं यस्य तेन करेण। अङ्गुलिषु भवान्यङ्गुलीयान्यूर्मिकाः। अङ्गुलीयकमूर्मिका
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.४० ) । जिह्वामूलाङ्गुलेश्छः
(अष्टाध्यायी ४.३.६२ ) इति छप्रत्ययः। रत्नानामङ्गुलीयानि तेषां प्रभयाऽनुविद्धान् व्याप्तानक्षान् पाशान्। अक्षास्तु देवनाः पाशकाश्च ते
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.४० ) । सलीलमुदीरयामासोञ्चिक्षेप। अहं त्वया सहैवं रंस्ये
-इति नृपाभिप्रायः। अक्षचातुर्ये कापुरुषोऽयम्-
इतीन्दुमत्यभिप्रायः। अक्षार्मा दीव्यः
इति श्रुतिनिषेधात् ॥
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कु | शे | श | या | ता | म्र | त | ले | न | क | श्चि |
त्क | रे | ण | रे | खा | ध्व | ज | ला | ञ्छ | ने | न |
र | त्ना | ङ्गु | ली | य | प्र | भ | या | नु | वि | द्धा |
नु | दी | र | या | मा | स | स | ली | ल | म | क्षान् |