दलेऽपि बर्हम्
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.२५१ ) । प्रियानितम्ब उचितसंनिवेशैरभ्यस्तनिक्षघेपणैर्नखाग्रैर्विपाटयामास। अहं तव नितम्ब एवं नखव्रणादीन्दास्यामि
- इति नृपाशयः। तृणच्छेदकवत् पत्रपाटकोऽयमपलक्षणकः
-इतीन्दुमत्याशयः ॥
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वि | ला | लि | नी | वि | भ्र | म | द | न्त | प | त्र |
मा | पा | ण्डु | रं | के | त | क | ब | र्ह | म | न्यः |
प्रि | या | नि | त | म्बो | चि | त | सं | नि | वे | शै |
र्वि | पा | ट | या | मा | स | यु | वा | न | खा | ग्रैः |