पृष्ठवंशाधरे त्रिकम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.७७ ) । सुहृत्समाभाषणतत्परोऽभूत्। वामपार्श्ववर्तिनैव मित्रेण संभाषितुं प्रवृत्त इत्यर्थः। अत एव विवृत्तत्रिकत्वं घटते। त्वया वामाङ्गे निवेशितया सहैवं वार्तां करिष्ये
-इति नृपाभिप्रायः। परं दृष्ट्वा पराङ्मुखोऽयं न कार्यकर्ता
- इतीन्दुमत्यभिप्रायः ॥
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नि | वे | श्य | वा | मं | भु | ज | मा | स | ना | र्धे |
त | त्सं | नि | वे | शा | द | धि | को | न्न | तां | सः |
क | श्चि | द्वि | वृ | त्त | त्रि | क | भि | न्न | हा | रः |
सु | हृ | त्स | मा | भा | ष | ण | त | त्प | रो | ऽभूत् |