अथ स्वयंवरा। पतिंवरा च वर्याथ
इत्यमरः। संज्ञायां भृतॄवृजि-
(अष्टाध्यायी ३.२.४६ ) इत्यादिना खच्प्रत्ययः। क्लृप्तविवाहवेषा कन्येन्दुमती मनुष्यैर्वाह्यं परिवारेण परिजनेन शोभि चतुरस्रयानं चतुरस्रवाहनं शिबिकामध्यास्यारुह्य मञ्चान्तरे मञ्चमध्ये यो राजमार्गस्तं वेवेश ॥
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म | नु | ष्य | वा | ह्यं | च | तु | र | स्र | या | न |
म | ध्या | स्य | क | न्या | प | रि | वा | र | शो | भि |
वि | वे | श | म | ञ्चा | न्त | र | रा | ज | मा | र्गं |
प | तिं | व | रा | क्लृ | प्त | वि | वा | ह | वे | षा |