सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तस्मिन्निति॥ नेत्रशतानामेकलक्ष्य एकदृश्ये कन्यामये कन्यारूपे तस्मिन्विधातुर्विधानातिशये सृष्टिविशेषे नरेन्द्रा अन्तःकरणैर्निपेतुः। आसनेषु देहैः केवलं देहैरेव स्थिताः। देहानपि विस्मृत्य तत्रैव दत्तचित्ता बभूवुरित्यर्थः। अन्तःकरणकर्तृके निपतने नरेन्द्राणां कर्तृत्वव्यपदेश आदरातिशयार्थः ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | स्मि | न्वि | धा | ना | ति | श | ये | वि | धा | तुः |
क | न्या | म | ये | ने | त्र | श | तै | क | ल | क्ष्ये |
नि | पे | तु | र | न्तः | क | र | णै | र्न | रे | न्द्रा |
दे | हैः | स्थि | ताः | के | व | ल | मा | स | ने | षु |