पितृदानं निवापः स्यात्
इत्यमरः (अमरकोशः २.७.३३ ) । निर्वर्त्यन्ते। उञ्छानां प्रकीर्णोद्धृतधान्यानां षष्टैः षष्ठभागैः पालकत्वाद्राजग्राहैरङ्कितानि सैकतानि पुनिनानि येषां तानि तथोक्तानि वो युष्माकं तानि तीर्थजलानि शिवानि भद्राणि कञ्चित्? अनुपप्लवानि किमित्यर्थः। उञ्छो धान्यांशकादानं कणिशाद्यर्जनं शिलम्
इति यादवः। ।षष्टाष्टमाभ्यां ञ च
(अष्टाध्यायी ५.३.५० ) इति षष्ठशब्दाद्भागार्थेऽन्प्रत्ययः। अत एवापूरणार्थत्वात् पूरणगुण-
(अष्टाध्यायी २.२.११ ) इत्यादिना न षष्ठीसमासप्रतिषेधः। सिकता येषु सन्ति सैकतानि। सिकताशर्कराभ्यां च
(अष्टाध्यायी ५.२.१०४ ) इत्यण्प्रत्ययः ॥
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नि | र्व | र्त्य | ते | यै | र्नि | य | मा | भि | षे | को |
ये | भ्यो | नि | वा | पा | ञ्ज | ल | यः | पि | तॄ | णाम् |
ता | न्यु | ञ्छ | ष | ष्ठा | ङ्कि | त | सै | क | ता | नि |
शि | वा | नि | व | स्ती | र्थ | ज | ला | नि | क | ञ्चित् |