इणो गा लुङि
(अष्टाध्यायी २.४.४५ ) इति गादेशः। पुष्पिताग्रावृत्तमेतत्। तल्लक्षणम्-अयुजि नयुगरेफलो यकारो युजि च नजौ जरगाश्च पुष्पिताग्रा
इति॥
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अ | थ | वि | धि | म | व | सा | य्य | शा | स्त्र | दृ | ष्टं | |
दि | व | स | मु | खो | चि | त | म | ञ्चि | ता | क्षि | प | क्ष्मा |
कु | श | ल | वि | र | चि | ता | नु | कू | ल | वे | षः | |
क्षि | ति | प | स | मा | ज | म | गा | त्स्व | यं | व | र | स्थम् |