सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तमिति॥ कर्णभूषणाभ्यां निपीडितौ पीवरौ२ पीनावंसौ यस्य तम्। शय्याया उत्तरच्छदस्योपर्यास्तरणवस्त्रस्य विमर्देन घर्षणेन कृशो विरलोऽङ्गरागो यस्य तम्। न त्वङ्गनासङ्गादिति भावः। प्रथितप्रबोधं प्रकृष्टज्ञानं तमेनमजं सवयसः समानवयस्का उदारवाचः प्रगल्भगिरः सूतात्मजा बन्दिपुत्राः। वैतालिकाः
इति वा पाठः। वैतालिका बोधकराः
इत्यमरः (अमरकोशः २.८.९७ ) । वाग्भिः स्तुतिपाठैः। उषसि। प्राबोधयन् प्रबोधयामासुः ॥
छन्दः
वसन्ततिलका [१४: तभजजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ |
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तं | क | र्ण | भू | ष | ण | नि | पी | डि | त | पी | व | रां | सं |
श | य्यो | त्त | र | च्छ | द | वि | म | र्द | कृ | शा | ङ्ग | रा | गम् |
सू | ता | त्म | जाः | स | व | य | सः | प्र | थि | त | प्र | बो | धं |
प्रा | बो | ध | य | न्नु | ष | सि | वा | ग्भि | रु | दा | र | वा | चः |
त | भ | ज | ज | ग | ग |