चिरबिल्वो नक्तमालः करजश्च करञ्जके
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.४७ ) । यस्मिंस्तस्मिन्। निवेशार्ह इत्यर्थः। नर्मदाया रोधसि रेवायास्तीरे क्लान्तं श्रान्तं रजोभिर्धूसराः केतवो ध्वजा यस्य तत्सैन्यं निवेशयामास ॥
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स | न | र्म | दा | रो | ध | सि | सी | क | रा | र्द्रै |
र्म | रु | द्भि | रा | न | र्ति | त | न | क्त | मा | ले |
नि | वे | श | या | मा | स | वि | ल | ङ्घि | ता | ध्वा |
क्ला | न्तं | र | जो | धू | स | र | के | तु | सै | न्यम् |