आशंसायां भूतवञ्च
(अष्टाध्यायी ३.३.१३२ ) इति भविष्यदर्थे क्तः। उष्ट्राणां क्रमेलकानां वामीनां वडवानां च शतैर्वाहितार्थं प्रापितधनमानतपूर्वकायम्। विनयनम्रमित्यर्थः। प्रजेश्वरं रघुं करेण स्पृशन्, वाचमुवाच ॥
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अ | थो | ष्ट्र | वा | मी | श | त | वा | हि | ता | र्थे |
प्र | जे | श्व | रं | प्री | त | म | ना | म | ह | र्षिः |
स्पृ | श | न्क | रे | णा | न | त | पू | र्व | का | यं |
सं | प्र | स्थि | तो | वा | च | मु | वा | च | कौ | त्सः |