साकेतः स्यादयोध्यायां कोसला नन्दिनी च सा
इति यादवः। जनस्याभिनन्द्यसत्त्वौ स्तुत्यव्यवसायावभूताम्। द्रव्यासुव्यवसायेषु सत्त्वमस्त्री तु जन्तुषु
इत्यमरः। कौ द्वौ? गुरुप्रदेयादधिकेऽतिरिक्तद्रव्ये निःस्पृहोऽर्थी। अर्थिकामादर्थिमनोरथादधिकं प्रददातीति तथोक्तः। प्रे दाज्ञः
। (अष्टाध्यायी ३.२.६ ) इति कप्रत्ययः। नृपश्च ॥
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ज | न | स्य | सा | के | त | नि | वा | सि | न | स्तौ |
द्वा | व | प्य | भू | ता | म | भि | न | न्द्य | स | त्त्वौ |
गु | रु | प्र | दे | या | धि | क | निः | स्पृ | हो | ऽर्थी |
नृ | पो | ऽर्थि | का | मा | द | धि | क | प्र | द | श्च |