संख्ययाव्ययासन्नादूराधिकसंख्याः संख्येये
(अष्टाध्यायी २.२.२५ ) इति बहुव्रीहिः। बहुव्रीहौ संख्येये डजबहुगणात्
(अष्टाध्यायी ५.४.७३ ) इति डच्प्रत्ययः समासान्तः। सोढुमर्हसि। हे अर्हन्मान्य! त्वदर्थं तव प्रयोजनं साधयितुं यावद्यते यतिष्ये। यावत्पुरानिपातयोर्लट्
(अष्टाध्यायी ३.३.४ ) इति भविष्यदर्थे लट् ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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स | त्वं | प्र | श | स्ते | म | हि | ते | म | दी | ये |
व | सं | श्च | तु | र्थो | ऽग्नि | रि | वा | ग्न्य | गा | रे |
द्वि | त्रा | ण्य | हा | न्य | र्ह | सि | सो | ढु | म | र्ह |
न्या | व | द्य | ते | सा | ध | यि | तुं | त्व | द | र्थम् |