तुं काममनसोरपि
इति मकारलोपः। महर्षेर्वरतन्तोः शिष्यं कौत्सं नृपती रघुर्निषिध्य निवार्य, हे विद्वन्! त्वया गुरवे प्रदेयं वस्तु किं किमात्मकं कियत् किंपरिमाणं वा? इत्येवं तं कौत्समन्वयुङ्क्तापृच्छत्। प्रश्नोऽनुयोगः पृच्छा च
इत्यमरः (अमरकोशः १.६.१० ) ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
ए | ता | व | दु | क्त्वा | प्र | ति | या | तु | का | मं |
शि | ष्यं | म | ह | र्षे | र्नृ | प | ति | र्नि | षि | ध्य |
किं | व | स्तु | वि | द्व | न्गु | र | वे | प्र | दे | यं |
त्व | या | कि | य | द्वे | ति | त | म | न्व | यु | क्तः |