वर्णाः स्युर्ब्राह्मणादयः
इति। ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थो भिक्षुश्चतुष्टये। आश्रमोऽस्त्त्री
इति चामरः। सर्वकार्यनिर्वाहकायेत्यर्थः। तस्मै रघवे विचंक्षणो विद्वान् वर्णी ब्रह्मचारी। वर्णिनो ब्रह्मचारिणः
इत्यमरः (अमरकोशः २.७.४६ ) । वर्णाद्ब्रह्मचारिणि
(अष्टाध्यायी ५.२.१३४ ) इतीनिप्रत्ययः। सः कौत्सः प्रस्तुतं प्रकृतमाचचक्षे ॥
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त | तो | य | था | व | द्वि | हि | ता | ध्व | रा | य |
त | स्मै | स्म | या | वे | श | वि | व | र्जि | ता | य |
व | र्णा | श्र | मा | णां | गु | र | वे | स | व | र्णी |
वि | च | क्ष | णः | प्र | स्तु | त | मा | च | च | क्षे |